औरत कि हि दुनिया

औरत कि हि दुनिया 


वो सपने भी संजोदेगी 

साथ सच करने देगी 

हार कर गिरोगे तो 

नया हौसला भी बांधयेगी ...


उसके बिना 

दुनिया ना देखोगे 

फिर भी ऐसे कोसोगे 

नरक उसे कहके 

तुम क्या स्वर्ग देखोगे ...


बिना शरीर के अपने

क्या गुल खिलायोगे

एस लोक कि परी को छोड 

स्वर्ग कि अप्सरा के साथ 

क्या गुलछरे उडायोगे ....

 

है नियत अगर साफ 

क्यू  इतना डरते हो ...

'औरत कि हि दुनिया है प्यारे' 

इस सच्चाई से 

क्यू तुम भागते हो ...


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